विश्व के अनेकों देशों में विवादों को न्यायालय में जाने से पहले ही सुलझा लिया जाता हैं। भारत में मध्यस्थता के माध्यम से विवादों को सुलझाने की परम्परा पूर्व में भी रही है। मध्यस्थता पहले पंचायतों या सामुदायिक स्तर पर की जाती थी। मध्यस्थता एक स्वैच्छिक, मितव्ययी एवं स्वनिर्णय पर आधारित कम समय में विवाद का समाधान खोजने वाली प्रक्रिया है, जिसमें तीसरे पक्ष के द्वारा तटस्थ रूप से विवाद का समाधान खोजने में सहायता की जाती है, तृतीय पक्ष, जो समाधान खोजने में सहायता करता है, उसे मध्यस्थ कहा जाता है। इस प्रक्रिया को वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Distpute Resolution) भी कहा जाता है। देश में करोड़ों प्रकरण न्यायालयों में लम्बित हैं, जिसमें समय और धन व्यय बहुत अधिक लगता है। यहीं न्याय में देरी का कारण है। सामाजिक, पारिवारिक, वैवाहिक, वाणिज्यिक, लेन देन से सम्बन्धित विवादों का वैकल्पिक समाधान मध्यस्थता के माध्यम से किया जा सकता है। यह दोनों पक्षों के दृष्टिकोण एवं हित संरक्षण पर आधारित सौहार्दपूर्ण वातावरण में की गई प्रक्रिया है।