पूर्व में मध्यस्थता केवल न्यायालय से जुड़ी प्रक्रिया थी, परन्तु नवीनतम मध्यस्थता अधिनियम, 2023 आने के बाद एक आदर्श बदलाव आया है। विश्वासयुक्त विधिक ढाँचे के अन्तर्गत इस अधिनियम में न्यायालयीन मध्यस्थता के साथ कानून द्वारा समर्थित विश्वास की भावना के साथ, निजी मध्यस्थता केन्द्रों का समर्थन किया गया है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नवीनतम विधिक सुधारों एवं संवैधानिक वैधता सहित इसे मान्य किया है। मध्यस्थता अधिनियम, 2023 संसद के दोनों सदनों से पारित होने एवं राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात 15 सिंतम्बर अधिनियमित किया गया है। मध्यस्थता अधिनियम 2023 में सम्बन्धित पूर्व विधियों का प्रभाव है, जैसे विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006; कम्पनी अधिनियम, 2013 एवं वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 की मध्यस्थता की समर्पित धाराओं को शामिल किया गया है।
मध्यस्थता अधिनियम 2023 के प्रमुख प्रावधान एवं विशेषताएं
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वाणिज्यिक, वैवाहिक, पारिवारिक सम्पत्ति सम्बन्धी विवादों के समाधान के लिये मध्यस्थता को बढ़ावा देना।
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सामुदायिक मध्यस्थता, संस्थागत निजी मध्यस्थता केन्द्र एवं ऑनलाईन मध्यस्थता का उन्नयन।
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भारतीय मध्यस्थों का पंजीयन, योग्यता, प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान एवं उनका पंजीयन।
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मध्यस्थता कौंसिल की स्थापना।
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संस्थागत मध्यस्थता को मान्यता।
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गोपनीयता, स्वनिर्णय एवं क्षेत्रीय अधिकारिता मुख्य आधार।
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स्वेच्छा, विश्वास के साथ यदि कोई पक्ष आवश्यक समझे तो उसका न्यायालय जाने का अधिकार भी बना रहता है।
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मध्यस्थता समझौतों को न्यायालयीन निर्णयों के समान विधिक मान्यता।
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मध्यस्थता की अवधि का प्रावधान।
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सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार प्रवर्तनीय।
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धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार जैसे प्रमाणित होने पर न्यायालय जाने का अधिकार।
