मध्यस्थता वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution) का ही रूप है। मध्यस्थता एक स्वैच्छिक पक्षकार केन्द्रित वार्तालाप की प्रक्रिया है, जिसमें एक तटस्थ तृतीय पक्ष पक्षकारों के विवादों का विशिष्ट तरीके से सम्प्रेषण, संवाद कौशल एवं समझौता तकनीकी का प्रयोग करते हुए, सौहार्दपूर्ण वातावरण में समाधान निकालने में सहायता करते हैं। दोनों पक्षों को अपनी शर्तें रखने का अधिकार रहता है।

मध्यस्थता प्रक्रिया में पक्षकार केन्द्र बिन्दु हैं, न कि मध्यस्था अधिकांषतः पक्ष अपनी सक्रिय भूमिका में रहते हैं, परन्तु मुख्य भूमिका में मीडिएटर तथ्यात्मक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करते हुए, दोनों पक्षों के बुनियादी हितों और सहमति के विकल्पों को चिन्हित करते हुए समाधान निकालते हैं।

मध्यस्थता एक सहायता प्राप्ति की अनौपचारिक प्रक्रिया है, जिसे संगठित रूप प्रदान किया जाता है. जिसमें तथ्यात्मक विधिक मुद्दों के साथ अन्तर्निहित कारणों पर बात होती है। व्यक्तिगत हित, व्यापार, व्यवसाय एवं समाज के हित में यह प्रक्रिया होती है, जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो।

मध्यस्थता के माध्यम से दोनों पक्ष आत्मविश्वास के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में समस्या का समाधान खोजते हैं, जिसकी विधिक मान्यता है। दोनों पक्षों के साथ उनके वकील एवं विधिक सलाहकार उपस्थित हो सकते हैं।

मध्यस्थता पूर्व में न्यायाधीशों एवं अभिवक्ताओं द्वारा की जाती थी। वर्तमान समय में समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों, विशेषज्ञों, जो कि विधि सेवा प्राधिकरण नियमों के अनुसार प्रशिक्षित हों, करते हैं।

मध्यस्थता पूर्णतः गोपनीय एवं व्यक्तिगत प्रक्रिया है, जिसके अनुसार किसी भी पक्ष की लिखित सहमति के बिना प्रगट नही किया जा सकता है?

मध्यस्थता सफल होने पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर के साथ मध्यस्थ के हस्ताक्षर होते हैं तथा उसका रजिस्ट्रीकरण किया जाता है एवं जो कि विधि न्यायालय के रूप से मान्य है।

यदि मध्यस्थता सफल नहीं हुई है, तो उसकी जानकारी लिखित रूप में प्रस्तुत की जाना अनिवार्य है।

न्यायालय में वाद स्थापित करने से पूर्व (Pre- Letigation Mediation भी मध्यस्थता की जाती है, जो दोनों पक्षों के लिये बंधनकारी एवं प्रभावी होती है। विशेषकर वैवाहिक, पारिवारिक, सामाजिक विवादों के लिये मध्यस्थता सबसे अधिक, व्यापक एवं स्वीकृत प्रक्रिया है, इसके अन्तर्गत किये गये समझौते बाध्यकारी होते हैं।